Wednesday 22 February 2012

तुम्हारा अक्स

कल रात ढूंढा 
 मैंने  हर जगह
कभी तारों में तो कभी
 चाँद में ...
तुम्हारा ही अक्स नज़र
आया मुझे हर जगह....

निहारती रही तुम्हें ,
जब तक
नयनों में तुम ख्वाब  बन कर
 ना समाये ....

सुबह को ढूंढा
 ओस की बूंदों पर,
तुम्हारा ही अक्स नज़र
आया मुझे
झिलमिलाती सतरंगी किरणों में।


6 comments:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...समर्पित प्रेम में ऐसा ही होता है..

    (वर्ड वेरिफिकसन हटा दें तो कमेन्ट देने में सुविधा रहेगी)

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  2. Bahut Khub Upasna Sakhi....Jawab nahi....Touching....

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