Friday 12 October 2012

अस्थि कलश


गंगा की लहरों पर तैरते
 अस्थि कलश
 को देख सहसा मन में
 विचार उमड़ पड़ते हैं ..

कैसे एक भरा - पूरा इन्सान
अस्थियों में बदल कर
एक छोटे से कलश में समा
जाता है ...

ना जाने ये किस की अस्थियाँ 

किसी वृद्ध / वृद्धा की ही हों ये अस्थियाँ ...
ना जाने उनके अरमान पूरे हुए भी
होंगे या नहीं ...
न जाने कुछ हसरत लिए भी उठ गए हों
 इस  दुनिया से ...

या फिर..!
 ये अस्थियाँ  किसी माँ की ही हो ,
अपने नन्हों को जब बिलखते देखा होगा
उसके प्राण एक बार फिर से
 देह पर न मंडराए  होंगे ... ! 
 छू कर देखोगे ये अस्थियाँ , 
 गीली ही मिलेगी , रोती - बिलखती
ममता से सराबोर ...

ये भी हो ...!
ये अस्थियाँ एक पिता की ही हो ,
जो बहुत मजबूर होकर
 इस दुनिया से गया हो ,
उस ने कब चाहा होगा, 
अपने नन्हों के ,
नन्हे-नन्हे कन्धों को  जिम्मेदारियों
के बोझ से लादना...

अब तो सोच कर ही आत्मा काँप
उठती है ....
ना जाने ये अस्थियाँ किसी अधखिले
फूल / कलि की ही ना हो ...
इनके अपनों ने ,
कैसे सहन किया होगा इनका बिछोह ,
क्या वो अब भी तड़प ना रहे होंगे ...

गंगा की लहरों पर तैरता
 यह अस्थि कलश  ना जाने किस की
आत्मा को मोक्ष दिलवाने जा रहा है ...
और
जिसकी अस्थियाँ इस कलश में है ,
उसके अपनों को मोक्ष कहाँ मिलेगा ,
शायद उनके जीते जी तो नहीं ...

7 comments:

  1. यही तो जीवन का सत्य है

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  2. बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति है

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  3. जीवन के सच को उजागर करती

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  4. गहन अभिव्यक्ति ...

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  5. यही जिंदगी का सच है ..जाने कितना कुछ छुपा है इन अस्थियों में ..
    मर्मस्पर्शी रचना

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  6. वाह,.... मर्मस्पर्शी......बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।

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