Wednesday 5 June 2013

पश्चाताप ....

लाचार, बेबस, कृशकाय ,
जर्जर वृद्ध ,
अपनी अवस्था को
झेलता ...

अपने कमरे की
धुंधली रौशनी में
अपने अंदर छाये
घने अँधेरे में एक प्यार
की किरण तलाशता ...

बाहर से उठती
तेज़ आवाजों में
पानी के लिए तरसती
अपनी आवाज़ को
को कहीं खोता ...

बिस्तर से उठने की
नाकाम
कोशिश करता
अचानक हूक सी उठी
दिल में
बद-दुआ सी जागी मन
में ...


बरबस
दीवार पर धूल जमी
अपने बाबूजी की तस्वीर
में से झांकती ,व्यंग से
चमकती आँखे देख
दिल
शर्म ,पश्चाताप ,
आँखे दुख
के आंसुओं से भर आयी ...

20 comments:

  1. सच है ,जब खुद पर गुज़रती है तब एहसास होता है लेकिन तब तक समय हाथ से निकल गया होता है ,

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  2. sachchai hamesha kadhvi hoti hai..chahe aap usko mano ya na mano...

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  3. मर्मस्पर्शी रचना ! दिल को द्रवित कर गयी ! बहुत खूब !

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  4. किसी दूसरे को देख अपने पिता की तस्वीर उभारता है तो इससे बढिया क्या होगा। आपकी कविता को पढ इंसानीयत शेष होने का एहसास हो गया।

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  5. मार्मिक रचना

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  6. मन को द्रवित करती बहुत,उम्दा प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )

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  7. काफी अच्छी कविता

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  8. मर्मस्पर्शी रचना !
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post मंत्री बनू मैं
    LATEST POSTअनुभूति : विविधा ३

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  9. बुढ़ापा वाकई दुःख दाई होता है,अपने अतीत को टटोलता जिन्दा रहता है
    मार्मिक और भावुक रचना
    सादर

    आग्रह है
    गुलमोहर------

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  10. क्रूर बुढ़ापा ....सबको अपनी चपेट में लेता है

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  11. यह तो क्रम है किन्तु इस पर सदैव सजग होना चाहिए

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  12. स्मृतिओं को झकझोरती रचना

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  13. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  14. सुन्दर प्रस्तुति..।
    साझा करने के लिए आभार...!

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  15. जब तक अपने ऊपर न बीते इंसान भूला रहता है,समझ में आता है तब सुधारने का अवसर बीत चुका होता है -यही जीवन की त्रासदी है!

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  16. sundar aur marmik prastuti..... saath hi uttam shabd chayan

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  17. बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

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  18. गुजरा हुआ समय आमने आ जाता है अक्सर ... और आइना खड़ा कर देता है ..
    मर्मस्पर्शीय ...

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